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अवधूत मण्डल आश्रम एक धार्मिक, पवित्र तथा ऐतिहासिक स्थल है। यह रामानंदी निराकारी वैष्णव संप्रदाय की प्राचीन संस्था है। इस संप्रदाय की स्थापना आचर्य बाबा सरयू दास जी ने की थी। इसकी स्थापना लगभग 200 वर्ष पूर्व हुई थी। ब्रहालीन श्री आचार्य बाबा सरयूदास जी महाराज के शिष्यों ने बसंत - पंचमी, दिनांक 13-4-1830 (लगभग 183 वर्ष पूर्व) को अवधुत मंडल आश्रम की स्थपना की थी। बाबा सरयू दास जी महाराज की मूल तपोस्थली पटियाला पंजाब में है। उस समय भारत एक अखंडित राष्ट्र था भारत पाकिस्तान तथा बांग्लादेश अलग-अलग राष्ट्र नहीं थे, बल्कि पूरा एक ही अखंडित राष्ट्र था। ब्रहालीन श्री बाबा सरयूदास जी महाराज महान तपस्वी, अलौकिक अध्यात्म में रत सिद्ध संत थे। वे सम्पूर्ण भारत में विख्यात, बड़े धार्मिक तथा बड़ी लग्न और निष्ठां से भारतीय संस्कृति में विश्वास रखते थे।

वह पंजाब के पटियाला नगर के निकट एक स्थान पर बहेड़ा वृक्ष के नीचे अपना आसान लगाकर तपस्या में लीन रहते थे। धीरे-धीरे लोंगो ने वंहा महात्मा जी को काफी समय से एक ही स्थान पर तपस्या करते देख उनके पास आना जाना प्रारम्भ किया और महात्मा जी के सम्पर्क में आकर लोंगो ने उनके विषय में जानकर अपनी समस्यायें उनके समक्ष रखना प्रारम्भ किया। महात्मा जी तो महान तपस्वी सिद्ध महापुरुष थे। वे जनसाधारण की समस्याओं का सहज ही समाधान कर देते थे। उस समय पटियाला के राजा को कोई सन्तान नहीं थी। इस बात से राजा व प्रजा राज्य का कोई वारिस न होने के कारण बहुत दुखी थे। राजा ने नीम हकीम आयुर्वेदिक उपचार, यज्ञ अनुष्ठान आदि सभी प्रकार के उपाय करवा लिए पर कही से भी कोई सफलता की उम्मीद नहीं लग रही थी। संयोगवश राजा के गुप्तचरों व उनकी प्रजा ने राजा को बताया कि नगर के बाहर एक सिद्ध संत बहेड़ा वृक्ष के नीचे तपस्या में लीन बैठें है। जो भी व्यक्ति अपनी समस्या से त्रस्त उनकी शरण में जाता है उसकी समस्या का समाधान वे सहज और सरल भाव से ही करते है। अतः हे महाराज आप भी (राजा और रानी) दोनों महात्मा जी की शरण में जायें तो सम्भवतः आपकी समस्या का निदान भी अवश्य ही हो जायेगा। राजा और रानी आपने गुप्तचरों और प्रजा के आग्रहवश तत्काल ही बाबा सरयूदास जी की शरण में गये और महात्मा जी के चरणों में दण्डवत प्रणाम किया। महात्मा जी ने राजा और रानी को आपने समक्ष प्रेमपूर्वक अभिवादन करते देख उनको आसान ग्रहण करने के लिए कहा। जब महात्मा जी ने उनकी कुशल क्षेम पूछी तो राजा ने अपने मन की व्यथा महात्मा जी के समक्ष रखी की ''हमारा जीवन संतान न होने के कारण नीरस बना हुआ है जिसके कारण राज्य की प्रजा भी दुःखी है इसी समस्या के समाधान हेतु आपके चरणों में आये है।'' राजा और रानी की इस व्यथा को सुनकर बाबा सरयूदास जी ने उनकी मनोकामना पूर्ण होने का शुभाशीष प्रदान कर प्रसाद में उस वृक्ष का फल उन्हें दिया (जिसके नीचे वह तपस्या कर रहे थे आज भी वह वृक्ष उसी स्थान पर मौजूद है) और कहा की कुछ समयांतराल पर प्रभुकृपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी। तदुपरांत राजा और रानी बाबा जी चरणों में शीश नवाकर प्रसन्नमुद्रा में आपने महल की ओर प्रस्थान किया। कुछ समय पश्यात राजा-रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और सम्पर्ण राज्य खुशियों से झूम उठा।

इस प्रकार राजा और रानी पुत्र प्राप्ति के कारण बड़े खुश थे और उन्होंने बाबा सरयूदास जी महाराज के चरणों में प्रार्थना करते हुए शाही बागान तथा उससे जुडी हुई अन्य जमीन जायदाद दान स्वरूप में जनकल्याण हेतु भेंट दी। उस समय से, पटियाला में बाबा सरयूदास जी का मुख्य स्थान बन गया। वह हमारे रामानंदी निराकारी वैष्णव सम्प्रदाय की आचार्य गददी है। आचार्य बाबा सरयूदास जी की तरह उनके शिष्य भी महान तपस्वी, तेजस्वी, भविष्य दृष्टा सिद्ध संत हुए।

बाबा सरयूदास जी महाराज के शिष्यों ने संतों, अपने अनुयाइयों और समाज के लोगों के लिए तपस्या, ध्यान, योग जैसी अनेक दैनिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक प्रवृतियों के लिए हिमालय के निकट गंगा जी के किनारे शांत और आध्यात्मिक जगह पर आश्रम की स्थापना की। कुछ भक्तो ने एक जमीन जो हरिद्वार के निकट ज्वालापुर गांव (जो आज हरिद्वार नगर का हिस्सा बन चूका है) आचार्य बाबा सरयूदास जी को दान स्वरूप भेंट की थी। इस जमीन पर उस समय घना वन था, वह आज भी गंगा जी के किनारे पर है। आज से लगभग 183 वर्ष पहले बाबा सरयूदास जी के शिष्यों ने उस जमीन पर अवधुत मंडल आश्रम की स्थापना की और छोटा सा मंदिर आश्रम और गौशाला का निर्माण करवाया, हालकि उनकी मुख्य गद्दी तो डेरा निराकारी, न्यू लालबाग, पटियाला (पंजाब) में ही रही। इस तरह ब्रहालीन श्री आचार्य बाबा सरयूदास जी महाराज के शिष्य बाबा हीरादास जी अवधुत मंडल आश्रम के मुख्य संस्थापक, विकासकर्ता तथा प्रथम अध्यक्ष रहे, और इसलिए आज भी आश्रम (AMA) पटियाला की अपनी आचार्य गद्दी से जुड़ा हुआ है। उनके बाद पीठाधीश स्वामी गोपालदेव जी, पीठाधीश स्वामी रामेश्वरदेव जी, पीठाधीश स्वामी महेश्वर देव जी तथा पीठाधीश स्वामी सत्यदेव जी गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार आश्रम के अध्यक्ष रहे और अब स्वामी संतोषानन्द देव जी अवधूत मण्डल आश्रम के अध्यक्ष है। ये संत महापुरुषों से सम्मानित महामंडलेश्वर की पदवी से अलंकृत है। ये सभी वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत गीता आदि शास्त्रों एंव संस्कृत भाषा के ज्ञाता और विव्दान होते हुए भी सरल स्वभाव के अति दुर्लभ सिद्ध संत थे। सभी गुरुजन अपने-अपने समय में प्रकांड विद्वान और भविष्य-द्रष्टा थे। इन सभी गुरुजनो ने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्तियों द्वारा अपने अनुयाइयों तथा समाज के लोगों को जीवन का सच्चा और उज्जवल मार्ग दिखाया। वह बहुत ही दयालु और हमेशा जनसमुदाय को धर्म के मार्ग पर चलाने के लिए सोचते रहते थे कि उनके अनुयायी तथा समाज के लोग प्रगति और शांति के मार्ग पर कैसे आगे बढ़े। गुरुजनो की आज्ञा, आदेश तथा उपदेश के अनुसार हमारे संप्रदाय के अन्य संतो स्वामी आत्मदेव जी, स्वामी सहदेव जी, स्वामी शीतलदेव जी, स्वामी अर्जुनदेव जी, स्वामी चेतनदेव जी, स्वामी रामदेव जी, स्वामी चिद्गंदेव जी, स्वामी कृपालुदेव जी, स्वामी रुद्रदेव जी, स्वामी इंद्रदेव जी, स्वामी ऋषभदेव जी ने भी अवधूत मण्डल आश्रम तथा उसके अन्य आश्रमों में बहुत तपस्या की। स्वामी रामेश्वर देव जी, स्वामी महेश्वर देव जी, तथा स्वामी सत्यदेव जी भागवत आदि अनेक पुराणों तथा रामायण, महाभारत, वेद, वेदांत उपनिषद आदि सभी दर्शन शास्त्रों के प्रसिद्ध प्रकाण्ड विद्वान थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु शास्त्रों में बतायें मार्गों के द्वारा सम्पूर्ण भारत में कथा प्रवचन के द्वारा अपने अनुयायियों को एक नई दिशा प्रदान की।

सभी गुरुजनो ने अपने-अपने कार्यकाल में मुख्य आश्रम का तो विकास किया लेकिन उसकी अन्य शाखाओं का भी विकास किया जैसे की

(1) गोपाल-धाम हनुमान मंदिर, जस्साराम रोड, निकट शिव मूर्ति, हरिद्वार (उत्तराखंड) भारत।

(2) अवधूत मण्डल आश्रम, हनुमान मंदिर। उजेली, उत्तरकाशी, हिमालय, भारत।

(3) अवधूत मण्डल आश्रम, हनुमान मंदिर, केशरी -बाग़, अमृतसर, पंजाब, भारत।

यह सब विकास कार्य गुरुजनो ने अपने भक्तजनो, अनुयाइओं, संतो तथा समाज के लोगों की धार्मिक एंव आध्यात्मिक प्रवृतियों के लिए किया। उसके बाद, 2004 में परम पूज्य सदगुरुदेव महामंडलेश्वर 1008 स्वामी सत्यदेव जी महाराज के ब्रहालीन होने के बाद परम पूज्य सदगुरुदेव महामंडलेश्वर 1008 स्वामी संतोषनंददेव जी महाराज महन्त एंव अध्यक्ष बने। सदगुरुदेव स्वामी संतोषनदं देव जी महाराज अवधूत मण्डल आश्रम तथा इसकी अन्य शाखाओं के वर्तमान में सिद्ध गुरु एंव अध्यक्ष है और अपने अनुयायिओं तथा समाज के लोगों के लिए दैनिक धर्मिक एंव आध्यात्मिक प्रवृत्तियों से आश्रम तथा इसकी शाखाओं का विकास कर रहे है।